गज़ल :  इश्क !

 गज़ल :  इश्क !
कवयित्री रजनी श्री बेदी

            गज़ल :  इश्क !

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किसी के हम बने सब कुछ, बना कोई हमारा है,
इश्क में एक दूजे बिन, कहां होता गुजारा है।

बहुत किस्से सुने हैं, हीर रांझा और मजनू के, इन्हीं के पाक रिश्तों ने, मोहब्बत को उबारा  है।

अगर पावन मोहब्बत हो, दीद हो जाती बिन देखे,
मैने भी दिल की आंखों से उसे सदियों निहारा है।

प्यार में गुफ्तगू से प्यार बढ़ता, है वहम झूठा,
मैने कर के इशारा , मौन लब से भी पुकारा है।

प्यार दोनों के दिल में हो तो भावों का समंदर है,
तैरने वाला जाने पानी मीठा है या खारा है।

 मोहब्बत रास आए तो, मोहब्बत ठीक है 'रजनी' ,
नहीं तो रश्क आने पर, कहें सब इश्क गारा है।

* कवयित्री : रजनी श्री बेदी   

      ( जयपुर - राजस्थान )