कविता : व्यथा

कविता : व्यथा

           कविता : व्यथा

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गीत गाती रही ..गम छुपाती रही,
अश्क रख आंख में..मुस्कुराती रही।

जख्म दिल में रखे थे..हजारों मगर,
बिन किए उफ्फ..मैं उनको सुखाती रही।

मन तो मेरा भी करता.. भुला दूं उसे,
जिसकी खातिर मैं.. रब को मनाती रही।

देखती हूं मैं रब को..तो कहता है वो, 
कांच को ही तू..हीरा बनाती रही।

प्यार अंधा है मुझको पता तब चला,
रजनी जब खुद को.. मुजरिम बताती रही।

* कवयित्री : रजनी श्री बेदी

      ( जयपुर - राजस्थान )