कविता :  तुम्हें बुलाए गांव

कविता :  तुम्हें बुलाए गांव

       कविता :  तुम्हें बुलाए गांव

      ********************

धरती सरसों से सजी,

घर-घर जले अलाव

परदेसी घर आइए,

तुम्हें बुलाए गांव

तुम्हें बुलाए गांव,

काम हर दांव चल रहा

विरह व्यथा में व्याकुल

विरही को मसल रहा

कह 'सुरेश' बिनु वर्षा

हिय लागे है परती

कब हरियाएगी साजन

'इस'दिल की धरती

 * सुरेश मिश्र ( हास्य-व्यंग्य कवि एवं मंच संचालक ) मुम्बई