कविता : नहीं ....

कविता : नहीं ....

         कविता : नहीं ....

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अपने ही जज़्बात से..गहरा मेरा नाता नहीं।
मेरा साया ही मुझे अब.. आंख भर भाता नहीं।

मैं में मैं अब हूं नही.. बस याद इक धूमिल सी है,
बीती बातें वक्त बीता.. कहने से आता नहीं।

पढ़ने को तो पढ़ ही लूं मैं..चेहरे हर रकीब के,
पर जुबां पर आ न जाए..ऐसा सितम ढ़ाता नहीं।

मुस्कुराता मन ही मन हूं..चापलूसी देख कर,
हैरान भी होता बहुत हूं..धोखा मगर खाता नहीं।

टूट कर बिखरा था लेकिन..टुकड़ा-टुकड़ा समेट लिया,
जाते-जाते रह गया तो..अब कहीं जाता नहीं।

हौंसले से मेरे 'रजनी'..सीख ले बारीकियां,
ऐसा हुनर भी रब से बंदा.. हर कोई पाता नहीं।

* कवयित्री : रजनी श्री बेदी
           ( जयपुर - राजस्थान )