कजरी : संइयां गुसियाई गयो ना !
कजरी : संइयां गुसियाई गयो ना !
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(नई नवेली दुल्हन शादी के उपरांत सावन महीने के प्रारंभ में अपने माता-पिता के घर आ जाती है। पति के साथ बीते हुए दिन याद करते हुए अपने पति के दिल की बात आशंका बस अपने सखी से कहती है।)
लगल सावन जू नैहर हौं आई गयो।
संइयां गुसियाई गयो ना।। -- टेक
जिया लागे नाहीं मोर, संइयां बाने कमजोर -2
तोर किरिया सखी,सचहूं कोहांई गयो।
संइयां गुसियाई गयो ना।।
मिले संइयां पहली बार,भइलै उनसे दीदार -2
चार दिन में इक दूजे,मोहाई गयो।
संइयां गुसियाई गयो ना।।
नैन रहिया निहारे,दिल संभले ना सभांले -2
तारे दिनवां में सपना दिखाई गयो।
संइयां गुसियाई गयो ना।।
हांथे दिहलैं मुबाइल,जेकरा हाई बा प्रुफाइल -2
डाइल कइद सखी,नंबर भुलाई गयो।
संइयां गुसियाई गयो ना।।
सखी कइद इक काल,दीप अइहैं ससुराल -2
तहरा पाइके हौं,सठियाई गयो।
संइयां गुसियाई गयो ना।।
* कवि : विनय शर्मा 'दीप '( मुंबई )