कविता : उम्मीद

कविता : उम्मीद

कविता : उम्मीद

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लब तेरे छू के मुझे , अब होश में आना नहीं।
ये छुअन है प्यार की, जाना मेरे जाना नहीं।

प्यार का गहरा समंदर
डूबी रहूँ इसमें सदा, तेरी बाहों से निकलकर  दूर अब जाना नहीं।

है समर्पण या मोहब्बत,  ये जहाँ कुछ भी कहे,
तेरे आगे इस जहाँ को  अपना कभी माना नहीं।

मेरी धड़कन का मधुर  संगीत तुमसे है फ़क़त,
 मेरी हंसी दुनिया में तूफां तुम कभी लाना नहीं।

सँग बिताऊँ तेरे जीवन 'रजनी' का इक ख्वाब है,
मेरे ख्वाबों के महल को  तुम कभी ढ़हाना नहीं।

* कवयित्री: रजनी श्री बेदी
       (जयपुर-राजस्थान)