मकर संक्रांति पर एक "डमरू छंद"
मकर संक्रांति पर एक "डमरू छंद"
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( मकर संक्रांति के दिन राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष मिला,इस दिन स्वर्ग के दरवाजे खुलते हैं, सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं,शीत ऋतु की विदाई और बसंत ऋतु का आगमन होता है, बहनें अपने भाइयों का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं।असम, पंजाब, तमिलनाडु और उत्तर भारत में इसके अलग-अलग नाम हैं)
सगर तनय सब लहत सरग जब,
लहरत पकल फसल पग-पग तब।
तब सब अमर अनर,नर हरसत,
सरग डगर अथ नरक खतम सब।
सब घर चहकत बहन नयन भर,
बदलत नखत मकर पथ शर रब।
रब सब मगन हरत गम हलधर,
चहल-पहल सरवर,नद तट सब।
* कवि : सुरेश मिश्र ( मुंबई )