कविता : कोई भी हाथ फेरे सिर पे तो
कविता : कोई भी हाथ फेरे सिर पे तो ...
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कोई भी हाथ फेरे सिर पे तो बस यूं समझिएगा
ये उसके दिल के अंदर का छुपा कुछ प्यार होता है
किसी का पांव छूने से मियां रुतबा नहीं बढ़ता
हमारे संस्कारों का महज इजहार होता है
ये लहज़ा नींव होती है,कभी भी भूल मत जाना
हमारी हर बुलंदी का यही आधार होता है
कहीं चलिए तो संग में हमसफर होना जरूरी है
अकेले में समय हरदम बड़ा खूंखार होता है
यहां तो झूठ बिकती है,नहीं सच का कोई क्रेता,
चुनावों में हमेशा झूठ का व्यापार होता है
यहीं पर स्वर्ग पाओगे,यहीं पर नर्क की दुनिया,
जो जैसा कर्म करता है,वही साकार होता है
चलो जब भी दुवाएं मां की अपने साथ में रखना
इसी से भंवर में फंसकर भी मानव पार होता है
* कवि : सुरेश मिश्र ( मुम्बई )