व्यंग्य कविता:अब बताओ क्या करें?
व्यंग्य कविता:अब बताओ क्या करें ?
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मांगता है वह उधारी,अब बताओ क्या करें,
झूठ लागे सच पर भारी,अब बताओ क्या करें।
वह निरुत्तर कर रहा है,तर्क में हरदम मुझे,
सच हमारा खाय गारी,अब बताओ क्या करें।
लूटकर भी वह मसीहा बन रहा है देश में,
जाति की ऐसी खुमारी,अब बताओ क्या करें।
देश बदला,लोग बदले,हो गया मंगल मिलन
कर रहे ये घुड़सवारी,अब बताओ क्या करें।
कर रहे हैं रोज हंगामा सदन में चीखकर,
जो हैं खुद ही भ्रष्ट चारी,अब बताओ क्या करें।
झील,सरवर, नदी,नाले, बादलों से तंग हैं,
लग गई कोई बिमारी,अब बताओ क्या करें।
जो बपौती समझता है देश को, कानून को
वह करे बकवास सारी, अब बताओ क्या करें।
खा रहे जिस देश की,गुण गाइए उस भूमि की
मानें न बतिया हमारी,अब बताओ क्या करें।
परवरिश में स्वान के नौकर लगे हैं रात दिन,
सड़क पर है मां बेचारी,अब बताओ क्या करें।
मां भला कब मांगती है,पुत्र के सुख चैन को,
दे रही है दुवा सारी,अब बताओ क्या करें।
* रचनाकार - सुरेश मिश्र ( हास्य-व्यंग्य कवि एवं मंच संचालक ) मुम्बई