कविता : सपना और सपने का सच...
कविता : सपना और सपने का सच...
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सपने अक्सर रात में
सोते समय आते हैं.....
ऐसी मान्यता भी है और
शायद सच भी यही है
पर.....यह भी सच है कि
सपने दिन में और
जागृत अवस्था में भी आते हैं...
अंतर इतना मात्र है कि
रात्रि के सपने आभासी होते हैं,
अक्सर स्थिर एवं स्टैटिक...!
जबकि दिन के सपने या फिर
जागृत अवस्था के सपने,
स्थिर तो होते हैं ...पर....
जरा सी आघात पर
हो जाते हैं गतिशील......
रात्रि के या नींद वाले सपनों में
सभी नव रसों के स्थाई भाव
एक साथ भी मिल सकते हैं..पर..
दिन या जागृत अवस्था के सपने
अक्सर लोभ प्रधान होते हैं....
वस्तु विशेष,पद विशेष या फिर
व्यक्ति विशेष के प्रति
आकर्षण के कारण,
ऐसे सपने गतिमान होते हैं....
ये सपने भी ना....!
चाहे जागृत अवस्था वाले हो
या फिर निद्रा की स्थिति वाले
चाहे दिन के हो या रात्रि के
अद्भुत रस की इन सबमें
प्रधानता होती है......
सपनों की भी एक
अलग सी दुनिया है,
सपने कभी हँसा देते हैं तो
कभी रुला देते हैं
सपने तो अक्सर
दुख देते हैं दगा देते हैं.....!
पर मानो या ना मानो
इतना भी नहीं दगा देते हैं
जितना अपने कोई सगा देते हैं....
मित्रों सपने देखना....!
जीवित होने की पहचान है...
कुदरत/ईश्वर के होने का
अनजाने में ही एक एहसास है...
सपने एकांकी नाटक होते हैं,
इनका रसास्वादन जरूरी है....
बिना सपनों के......!
आपकी दुनिया भी अधूरी है...
मित्रों सपनों के बारे में क्या कहूँ
सच यही लगता है कि.....!
सपने दिखाकर शायद ऊपर वाला
कभी हम पर हँस रहा होता है....
या फिर माया जगत में.....!
वह कभी अपने पैमाने पर
हमको कस रहा होता है.....
* रचनाकार.....
- जितेन्द्र कुमार दुबे
(अपर पुलिस अधीक्षक)
जनपद--कासगंज