कविता : कारगिल के वीर...
कारगिल विजय दिवस पर भावपूर्ण कविता
कारगिल के वीर..
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कवि : राजेश कुमार लंगेह
वो दीवाने थे जो मिटाकर ख़ुदी को सबसे ज़ुदा हो गए ,
फहराके तिरंगा हिमालय पर ख़ुदा हो गए ।
करगिल था खून से लथपथ ,
चीख रही थी धरती माँ
बिछाकर दुश्मनों की लाशें
मुल्क पर फ़ना हो गए
झेलम सिंध चिनाब सुनाती हैं
जज़्बे के किस्से
सौ सौ दुश्मन थे एक एक के हिस्से
कतरा कतरा लहू का देकर
वो कमाल हो गए
वो दीवाने थे जो मिटाकर ख़ुदी को सबसे ज़ुदा हो गए
फहराके तिरंगा हिमालय पर ख़ुदा हो गए ।
क्या सोचा था उसने कि हमारी नसों में खून नहीं पानी है
हिमालय को जीतने के ख्वाब में बड़ी आसानी है
अरे भूल गया कि हम वो हिन्दुस्तानी हैं
जो पीकर जहर दुनिया के लिए शिवाय हो गये
वो दीवाने थे जो मिटाकर ख़ुदी को सबसे ज़ुदा हो गए
फहराके तिरंगा हिमालय पर ख़ुदा हो गये ।
जमती बर्फ में आग लगा दी थी
देखकर हिन्दुस्तानी ,
जान उसकी हलक में आ गयी थी
कुछ नहीं था जो रोक सकता था उसको
शीश हथेली पर सजा के वो शहीद हो गए
वो दीवाने थे जो मिटाकर ख़ुदी को सबसे ज़ुदा हो गए
फहराके तिरंगा हिमालय पर ख़ुदा हो गए ।
सिहर उठती है हवाएँ भी सुनकर उनकी दास्तान
सहम जातीं हैं हदें भी याद करके बहादुर शौर्यबान
वो वीर सपूत भारत माँ के मान हो गए
वो दीवाने थे जो मिटाकर ख़ुदी को सबसे ज़ुदा हो गए
फहराके तिरंगा हिमालय पर ख़ुदा हो गए ।
करगिल था खून से लथपथ ,
चीख रहीं थी धरती माँ
बिछा के दुश्मनों की लाशें मुल्क पर फ़ना हो गए
वो दीवाने थे जो मिटाकर ख़ुदी को सबसे ज़ुदा हो गए
फहराके तिरंगा हिमालय पर ख़ुदा हो गए ।