बाल-कथा : बाज की सीख...
बाल-कथा : बाज की सीख...
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एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार करने के लिए गया। बहुत प्रयास करने के बाद उसने जाल में एक बाज पकड़ लिया। शिकारी जब बाज को लेकर जाने लगा तब रास्ते में बाज ने शिकारी से कहा, “तुम मुझे लेकर क्यों जा रहे हो?”
शिकारी बोला, “मैं तुम्हें मारकर खाने के लिए ले जा रहा हूँ।”
बाज ने सोचा कि अब तो मेरी मृत्यु निश्चित है। वह कुछ देर यूँ ही शांत रहा और फिर कुछ सोचकर बोला, “देखो, मुझे जितना जीवन जीना था मैंने जी लिया और अब मेरा मरना निश्चित है, लेकिन मरने से पहले मेरी एक आखिरी इच्छा है।”
“बताओ अपनी इच्छा?”, शिकारी ने उत्सुकता से पूछा।
बाज ने बताना शुरू किया- मरने से पहले मैं तुम्हें दो सीख देना चाहता हूँ, इसे तुम ध्यान से सुनना और सदा याद रखना-' पहली सीख तो यह कि किसी कि बातों का बिना प्रमाण, बिना सोचे-समझे विश्वास मत करना और दूसरी ये कि यदि तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो या तुम्हारे हाथ से कुछ छूट जाए तो उसके लिए कभी दुःखी मत होना।"
शिकारी ने बाज की बात सुनी और अपने रास्ते पर आगे बढ़ने लगा।
कुछ समय बाद बाज ने शिकारी से कहा- “शिकारी, एक बात बताओ…अगर मैं तुम्हें कुछ ऐसा दे दूँ जिससे तुम रातों-रात अमीर बन जाओ तो क्या तुम मुझे आज़ाद कर दोगे?”
शिकारी फ़ौरन रुका और बोला, “क्या है वो चीज, जल्दी बताओ?”
बाज बोला, “दरअसल, बहुत पहले मुझे राजमहल के करीब एक हीरा मिला था, जिसे उठा कर मैंने एक गुप्त स्थान पर रख दिया था। अगर आज मैं मर जाऊँगा तो वो हीरा ऐसे ही बेकार चला जाएगा, इसलिए मैंने सोचा कि अगर तुम उसके बदले मुझे छोड़ दो तो मेरी जान भी बच जायेगी और तुम्हारी गरीबी भी हमेशा के लिए मिट जायेगी।”
यह सुनते ही शिकारी ने बिना कुछ सोचे समझे बाज को आजाद कर दिया और वो हीरा लाने को कहा।
बाज तुरंत उड़ कर पेड़ की एक ऊँची शाखा पर जा बैठा और बोला- “कुछ देर पहले ही मैंने तुम्हें एक सीख दी थी कि किसी के भी बातों का तुरंत विश्वास मत करना लेकिन तुमने उस सीख का पालन नहीं किया। दरअसल, मेरे पास कोई हीरा नहीं है और अब मैं आज़ाद हूँ।"
यह सुनते ही शिकारी मायूस होकर पछताने लगा…
तभी बाज फिर बोला "तुम मेरी दूसरी सीख भूल गए कि अगर कुछ तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो तो उसके लिए तुम कभी पछतावा मत करना।"
शिक्षा:-
हमें किसी अनजान व्यक्ति पर आसानी से विश्वास नहीं करना चाहिए और किसी प्रकार का नुकसान होने या असफलता मिलने पर दुःखी नहीं होना चाहिए, बल्कि उस बात से सीख लेकर भविष्य में सतर्क रहना चाहिए।
सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
* लेखिका : कविता सिंह
( नोएडा - गौतम बुद्ध नगर )