कविता : ये जिंदगी...

कविता : ये जिंदगी...

       कविता : ये जिंदगी...

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बदनसीबों के लिए..बस काश है ये जिंदगी,
खुशनसीबों की मगर.. अरदास है ये जिंदगी।

सोच पर ही निभ रही है.. जिंदगी जुदा जुदा,
साम दाम दण्ड भेद..
उल्लास है ये जिंदगी

रहे जो दफन सोच में..मदद न खुद की कर सके,
बिन चिता के जलती उनकी..लाश है ये जिंदगी।

रहम पे बसर हो रही..जिंदगी तो गम नहीं,
वक्त के बदलाव की..इक आस है ये जिंदगी।

मांग रब से खैर फिर.. देख कायनात को,
तेरी चाह से मिले.. वो राह है ये जिंदगी।

वक्त जैसा भी कहे ..तू 
हँस के चल उस राह पे,
गर मिले सुकून तो.. बस रास है ये जिंदगी,

ख्वाब को बंद आंख से.. देख आंखे खोल ले,
'रजनी' की फिर मान लेना..दास है ये जिंदगी।

* कवयित्री :  रजनीश्री बेदी                                ( जयपुर-राजस्थान)