कवि विनय शर्मा दीप की कलम से विशेष : होली गीत
कवि विनय शर्मा दीप की कलम से विशेष : होली गीत
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( एक सहेली दूसरी सहेली से अपने मन की बात करती हुई,अपने अगाढ़ प्रेम को प्रगट करती हुई कहती है)
मन भइलै अधीर -2
जोहत बाट संहतिया,हे सखिया।।
माघ जवानी में प्रीत लुटावत।
पोथी मंगल गीत सुनावत।
अब मीत बुलावत पतिया,हे सखिया।।
नदी मुहाने पे हाट सजल हे।
रंग गुलाल के लाट लगल हे।
राह जोहत अब अंखिया,हे सखिया।।
शिशिर बसंत महंत बनल हे।
चोला पहिन मोर कंत सजल हे।
अब धड़कत मोरी छतिया,हे सखिया।।
मोहे पिन्हा दा हे लहंगा चोली।
दीप से कहिके मंगा द हे डोली।
भोली देखे सपन हौं रतिया,हे सखिया।।
* रचनाकार : विनय शर्मा दीप
( मुंबई )