कविता : महुआ
कविता : महुआ
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महुआ प्यारा, महुआ न्यारा
महकाता है उपवन सारा।
पीला महुआ और सफेद,
है इसकी पेंदी में छेद।
लप्सी,ठोंकवा,लाटा है,
इससे बने पराठा है।
ये निर्धन का मेवा है,
देता हरदम सेवा है।
सब फूलों में आला है,
शक्ति बढ़ाने वाला है।
दुनिया में सरनाम है ये,
बैलों का बादाम है ये।
जब ये धरती पर आए,
पीली चादर फैलाए।
छोटे,मझले,बड़े-बड़े,
भर दें झउआ और घड़े।
नशा बसंती लाता है,
तो मस्ती भर जाता है।
महुआ रानी कहते हैं,
लोग नशे में बहते हैं।
समझो तुम हालातों को,
अब यथार्थ की बातों को।
बेंचो पैसा आता है,
ये खुशहाली लाता है।
महुआ खूब लगाओ रे,
सारी खुशियां पाओ रे।
* कवि - सुरेश मिश्र
( मुंबई )