डमरू छंद : सतत नमन कर ...

डमरू छंद : सतत नमन कर ...

     डमरू छंद : सतत नमन कर ...

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( एक डमरू छंद। जब तक सांस चल रही है तब तक ही इस तन का महत्व है, तो फिर गुमान किस बात का ?)

सतत नमन कर,सतत जतन कर,
सतत गमन कर,भरम न कर तन।

तन न गरल कर, डगर सरल कर,
नजर तरल कर, अगन न कर मन।

तन न अमर जग, चलत रहत रग,
तब तक जगत करत घर परछन।

परछन हर छन करत न सत जन,
 जग पथ पर कण-कण सब रहजन।

* रचनाकार : सुरेश मिश्र ( हास्य-व्यंग्य कवि एवं मंच संचालक ) मुम्बई