कविता : दीपावली
कविता : दीपावली
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दिशाओं से जो है भटका त्रिशा लोचन जहां कर दे।
मिटा दे यूं कलह अंतस छिपा मोचन जहां कर दे।
गले से तू गले लग जा गिले शिकवे मिटाकर के।
जलाकर दीप घर में तूं दिया रोशन जहां कर दे।
जलाओ दीप जग में यूं उजाला हो तो ऐसा हो।
मिटे तम घर की चौखट से शिवाला हो तो ऐसा हो।।
गगन में झूमते गाते चमकते हैं जूं ध्रुव तारे।
दिवाली में बने सेवंई के जैसा खीर वैसा हो।।
गले मिलना मिलाना दीप खुशियां बांटते रहना।
ख़ुशी का पर्व दीवाली सभी को साजते रहना।
तिमिर के घर उजालों का लगे मेला करो ऐसा।
समृद्धि साथ में बैठे व किर्ति संग संग रहना।
* रचनाकार : विनय शर्मा दीप
( कवि एवं पत्रकार ) मुंबई