बाल कथा : सकारात्मकता !
बाल कथा : सकारात्मकता !
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अखिल और मोहित बहुत ही अच्छे मित्र थे और दोनों कक्षा पांच के विद्यार्थी थे ।
एक दिन अखिल जब स्कूल से घर पहुंचा, उसका मुंह लटका हुआ था ।
ये देखकर उसकी मां ने पूछा
"अखिल बेटा ,आज कुछ हुआ है क्या स्कूल में ? तुम्हारा मुंह क्यों लटका हुआ है ?"
अखिल थोड़ी देर खामोश रहा फिर बोला "अरे नहीं मां कुछ भी तो नहीं ...।"
पर उसकी मां भी कहां चुप बैठने वाली थी , उन्होंने मोहित को फोन लगा दिया ।
"मोहित बेटा आज तुम्हारे स्कूल में अखिल के साथ कुछ हुआ है क्या" अखिल की मां मोहित से पूछ लिया।
" हां आंटी जी,आज अखिल की लड़ाई एक बच्चे से हो गई थी और इसने उसकी पिटाई कर दी थी,इसलिए इन दोनों को शिक्षक से डांट पड़ी है।"
फिर अखिल की मां अखिल के ऊपर चिल्लाने लगी " मैं परेशान हो गई हूं तुम्हारी रोज रोज की शिकायतों से ,स्कूल से रोज शिकायत आती रहती है ..अक्सर किसी न किसी बच्चे की पिटाई कर देते हो तुम ।"
"अरे बहू, तुम क्यों चिल्ला रही हो बच्चे पर ? अखिल के दादाजी ने पूछा था।
" पिता जी आपको पता है इसने क्या किया है? हर रोज स्कूल से मार पीट करके आ जाता है ,परेशान हो गई हूं इससे मैं..."अखिल की मां बोली थी।
"अच्छा तुम जाओ, मैं इसको समझा दूंगा...."अखिल के दादा जी ने कहा,फिर वो अखिल को समझाने लग गए।
पर अखिल को मोहित के ऊपर बहुत गुस्सा आ रहा था।
"मेरी मम्मी से शिकायत करता है?उसको तो छोड़ूंगा नहीं मैं..." अखिल मन ही मन फैसला कर चुका था।
उसके दादा जी अब उसको समझाते हुए कह रहे थे "बेटा, जरूरी नहीं कि हर दोस्त तुम्हारा बुरा ही चाहता हो, कभी कभी तुम्हारी भलाई के लिए भी वे बुराई कर देते हैं।"
"क्या आपके दोस्त भी ऐसे थे दादा जी ?" अखिल ने उत्सुकता भरी नजरों से उन्हें देखते हुए पूछा था।
"हां बिल्कुल थे, मैं जब कभी होम वर्क कंप्लीट करके नहीं जाता था तो वे लोग मेरे घर पर आकर बता देते थे... उस समय मुझे बुरा जरूर लगता था । पर एग्जाम के समय उसके नंबर हमेशा मुझसे अच्छे आते थे और मैं उसे देख ,देख कर मेहनत करने लग गया और फिर मैं भी पढ़ाई में ठीक ठाक हो गया था।
"दादा जी, फिर तो मुझे मोहित से माफी मांगनी चाहिए ,अखिल अपने दादा जी से बोला।
" हां - हां, बिल्कुल... तुम कल स्कूल में मिलकर उससे माफी मांग लो, यही उचित होगा ।
दूसरे दिन जब अखिल और मोहित स्कूल में मिले तो अखिल ने उससे माफी मांग ली और दोनों पहले जैसे अच्छे मित्र बन गए।
कहानी का सार: कभी कभी सकारात्मक भाव जिंदगी से सारी कड़वाहट दूर कर देता है!
* लेखिका : कविता सिंह
(नोएडा)