मॉरिशस से लाए गए हृदय रोग पीड़ित नवजात बच्चों को नवी मुंबई में मिला जीवनदान
मॉरिशस से लाए गए हृदय रोग पीड़ित नवजात बच्चों को नवी मुंबई में मिला जीवनदान
* हेल्थ डेस्क
नवी मुंबई, 7 अगस्त 2024: अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई की सुपर-स्पेशलिटी पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी टीम की निपुणताओं की बदौलत, मॉरिशस से आए हुए दो प्रीमैच्योर नवजात बच्चे अपने माता पिता की गोदी में हंसते-खेलते घर लौट गए हैं। यह दोनों नवजात बच्चे समय से पहले पैदा हुए हैं और उनमें जन्म से ही दुर्लभ और जानलेवा जटिल जन्मजात हृदय रोग पाया गया था। अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई में इन नवजात बच्चों पर पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ भूषण चव्हाण ने मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया सफलतापूर्वक की। किसी भी बच्चे के हृदय में जब जन्म से ही कोई ऐसी गड़बड़ी हो जिससे हृदय की रचना और कार्य पर असर पड़ रहा हो तो उसे जन्मजात हृदय रोग कहा जाता है। इससे नवजात बच्चों में गंभीर, जानलेवा जटिलताएं हो सकती हैं। लगभग 1% बच्चों में जन्मजात हृदय रोग होता है, दुनियाभर में यह सबसे आम जन्मजात दोष है। अकेले भारत में हर साल 200,000 से ज़्यादा बच्चें जन्मजात हृदय रोग के साथ पैदा होते हैं, उनमें हर पांच में से एक का दोष बहुत ही गंभीर होता है, जिसके लिए जन्म के बाद पहले साल में ही इलाज करना ज़रूरी होता है।
मॉरिशस से आए हुए इन दो नवजात बच्चों में से एक 34 हफ़्तों में ही पैदा हुआ था और तब उसका वज़न सिर्फ 1.5 किलो था। उसे पल्मनरी अट्रेसिया के साथ टेट्रालॉजी ऑफ़ फ़ॉलोट हुआ था। इस जटिल स्थिति में फेफड़ों तक जाने वाले रक्त के बहाव में गंभीर बाधाएं आती हैं, जिससे बच्चा नीला पड़ने लगता है। दूसरा बच्चा भी समय से पहले पैदा हुआ था और उसका वज़न सिर्फ 2 किलो था। उसमें हृदय संबंधी कई विसंगतियां थी, साथी साइटस इन्वेर्सस यानी हृदय छाती में दाहिनी ओर होने की वजह से तबियत और भी ज़्यादा ख़राब हो चुकी थी।
डॉ भूषण चव्हाण, सीनियर कंसल्टेंट-पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी, अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई ने कहा,"यह बच्चें प्रीमैच्यूर थे और उनकी स्थिति बहुत ही जटिल थी, इसकी वजह से इन केसेस में कई चुनौतियां थी। दोनों केसेस में हृदय दोष के दुर्लभ कॉम्बिनेशन के लिए बहुत ही बारीकी से प्लानिंग और अमल में लाना आवश्यक था। हमारी समर्पित टीम पर मुझे बहुत गर्व है, जिन्होंने इन केसेस पर काम किया। अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई में आधुनिकतम बुनियादी सुविधाएं होने की वजह से हम इन नाजुक प्रक्रियाओं को सफलतापूर्वक कर पाएं।"
टेट्रालॉजी ऑफ फॉलोट और पल्मनरी एट्रेसिया के पहले केस में हृदय से फेफड़ों तक के रक्त के बहाव को नियंत्रित करने वाला वाल्व (पल्मनरी वाल्व) पूरी तरह से ब्लॉक हो चूका था। रक्त के बहाव को फिर से बहाल करने के लिए डॉ चव्हाण ने एक डिफ्लेटेड बलून और स्टेंट के साथ कैथेटर को जांघ की वेन के माध्यम से अंदर डाला और उसे बहुत सावधानी से हृदय तक ले गए। जब कैथेटर सिकुड़े हुए हिस्से तक पहुंचा तब गुब्बारे को फुलाकर जगह को बड़ा किया गया। स्टेंट एक स्कैफ़ोल्ड की तरह काम करते हुए जगह को हमेशा के लिए खुला रखता है, जिससे ऑक्सिजन से भरपूर रक्त हृदय से फेफड़ों तक बहता रहता है, बच्चे का ब्ल्यू बेबी सिंड्रोम ठीक हुआ और उसे जीने का नया अवसर मिला।
दूसरे बच्चे का केस एक अनोखी चुनौती थी क्योंकि उसमें कई हृदय दोष होने के साथ-साथ हृदय दाहिनी ओर था। पहले से ही नाजुक प्रक्रिया को इन चुनौतियों ने और भी कठिन बना दिया। रियल-टाइम मार्गदर्शन के लिए उन्नत इमेजिंग तकनीक का उपयोग करते हुए, डॉ. चव्हाण ने हृदय तक पहुंचने के लिए रक्त वाहिकाओं के ज़रिए एक कैथेटर को नेविगेट किया और हृदय के भीतर उचित रक्त के सही बहाव के लिए पीडीए (पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस) के भीतर दो स्टेंट लगाए।
अरुणेश पुनेथा, पश्चिमी क्षेत्र-रीजनल सीईओ, अपोलो हॉस्पिटल्स ने कहा,"अपोलो हॉस्पिटल्स में, हम हर मरीज़ को उसकी उम्र या केस की जटिलता की परवाह किए बिना उच्चतम मानक देखभाल प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। समय से पहले जन्मे इन बच्चों ने हमारे द्वारा प्रदान की जाने वाली विशेष देखभाल पाने के लिए हजारों मील की यात्रा की, और उनकी केस में मिले सफल परिणाम डॉ. चव्हाण और हमारी पूरी पीडियाट्रिक कार्डियक टीम के कौशल, करुणा और समर्पण को दर्शाते हैं। हमें बहुत गर्व है कि, हम जन्मजात हृदय रोग की चुनौतियों का सामना करने वाले परिवारों को आशा और इलाज प्रदान कर पा रहे हैं। विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवा को हर किसी की पहुंच में लाने की हमारी प्रतिबद्धता की पुष्टि इन केसेस में मिली सफलता ने की है।"
अपोलो हॉस्पिटल्स नवी मुंबई में 24X7 आपात स्थितियों को संभालने के लिए अत्याधुनिक बाल-अनुकूल बुनियादी सुविधाओं से पूर्ण है। इसी वजह से दोनों शिशु तेज़ी से ठीक हो गए और उनकी प्रक्रिया के कुछ दिनों के भीतर उन्हें घर ले जाने की अनुमति दे दी गई, तब वे बिना सहायता के सांस ले रहे थे और उन्हें लगातार दवा लेने से मुक्ति मिल गई। जहां पहले बच्चे को उम्र के बढ़ने के साथ-साथ और सर्जरी की आवश्यकता होगी, वहीं अधिक जटिल समस्याओं वाले दूसरे बच्चे को लगातार निगरानी और भविष्य में इलाज की आवश्यकता हो सकती है।