कविता : मन की बातें
कविता : मन की बातें
****************
भूल अब मैं गई हूं.. खिलखिलाना,
नहीं आता मुझे अब.. गुनगुनाना।
जरा सा थक गई.. और थम गई हूं,
कहूं लब को जरा सा.. मुस्कुरा ना।
दिल कहे उतने ही रख फासले तू,
रहे आसान कदमों को बढ़ाना,
सरल सी जिंदगी में रंग बहुत हैं,
अपने किरदार को जल सा बनाना।
जख्म नासूर बनने से ही पहले,
समय रहते ही उसको खुद सुखाना।
निभाना खुद से अब मुश्किल बहुत है,
बने रिश्ते तो फिर पूरा निभाना।
बदलते लोगों से परहेज़ कैसा,
जीत ले जैसा हो 'रजनी' ज़माना।
* कवयित्री : रजनी श्री बेदी
(जयपुर-राजस्थान)