कविता : रक्षा बंधन

कविता : रक्षा बंधन

      कविता : रक्षा बंधन

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कसम खाकर पहनी है जब से यह वर्दी 
जिंदगी की हर शह वतन के नाम कर दी 
दुनिया के लिए एक दिन का है रक्षा बंधन 
हमने तो पूरी जिंदगी ही लिख दी।
 
ना धागा था ना कोई रेशमी डोर 
बंधा दिल जज्बातों से है रहा भाव विभोर 
अमन के हर हवा के झौंके में हमने अपनी साँस भर दी 
दुनिया के लिए एक दिन का है रक्षा बंधन 
हमने तो पूरी जिंदगी ही लिख दी।
 
ना ख्याल किसी धर्म का, ना ही जात पात का
दिलो दिमाग में सिर्फ मुल्क की हिफाजत दिन-रात 
सपनों का वो वक़्त वो घड़ी भी सरहदों को दे दी 
दुनिया के लिए एक दिन का है रक्षा बंधन 
हमने तो पूरी जिंदगी ही लिख दी।

कोई दुश्मन ना छू पाये सरहद की लकीरों को 
बदल देंगे हौंसले से लिखी हुई तक़दीरों को 
हर बार हिमालय की हमने शान बढ़ा दी 
दुनिया के लिए एक दिन का है रक्षा बंधन 
हमने तो पूरी जिंदगी ही लिख दी।
 * कवि : राजेश कुमार लंगेह  ( बीएसएफ )