कविता : तेरी बज़्म से अब जाने का वक़्त है

कविता : तेरी बज़्म से अब जाने का वक़्त है

कविता : तेरी बज़्म से अब जाने का वक़्त है .... --------------------------------

तेरी बज़्म से अब जाने का वक़्त है 
दिल में उधड़ी कोई पुरानी परत है 
ना जाने का दिल, ना बताने का होश है 
धुंधली धुंधली सी राहें ना चलने का होश है
तेरी बज़्म से अब जाने का वक़्त है 
दिल में उधड़ी कोई पुरानी परत है ।

कुछ टूट रहा है कुछ छूट रहा है 
रह रह कर आंसुओं का झरना फ़ूट रहा है 
ना जाने का कोई अर्थ है ना रहने की शर्त है 
तेरी बज़्म से अब जाने का वक़्त है 
दिल में उधड़ी कोई पुरानी परत है

मोह था जिसने मोह लिया 
संग हवाओं के मैं हो लिया 
समझा था की यह ताउम्र रहेगा 
नादान था, सारा खेल तो वक़्त है 
तेरी बज़्म से अब जाने का वक़्त है 
दिल में उधड़ी कोई पुरानी परत है

ना जाने कब फिर राहें सब्ज़ हों
कुछ उम्मीद जगे और हमराह हों 
शायद अब ख्वाब में ही मुलाकात हो 
वर्ना कहाँ मिलने की जिद्द या शर्त है 
तेरी बज़्म से अब जाने का वक़्त है 
दिल में उधड़ी कोई पुरानी परत है

क्या है जो छोड़ आया 
क्या था जो संग ले आया 
जरूरी सामान नहीं  था 
बस लोग,जगह, यादें और लम्हों का वक़्त है 
तेरी बज़्म से अब जाने का वक़्त है 
दिल में उधड़ी कोई पुरानी परत है


* कवि : राजेश कुमार लंगेह  ( जम्मू )