सावन के अवसर पर विशेष कजरी "देशवा बुलावतानी हो"
सावन के अवसर पर विशेष कजरी "देशवा बुलावतानी हो"
( तीज-त्योहार पर यदि पति अपनी पत्नी के साथ नहीं होते तो पत्नी को सब कुछ फीका-फीका लगता है
और याद सताने लगती है फिर विरहन संदेश में क्या लिखती है ...)
परदेशी संदेश हौं पठावतानी,
देशवा बुलावतानी हो ।।
काली बदरी के भीत, लिखतानी हम गीत ।
मीत तहरा बिना, सावन बितावतानी।
देशवा बुलावतानी हो ।।
पतझड़ फाग बसंत, नाहिं आयो मोरे कंत ।
अंत सावन कै, तहरा जगावतानी ।
देशवा बुलावतानी हो ।।
झुमका नथनी औ बिंदिया, लेइके अइह हमरे तिजिया ।
कंगना खनकता, तहरा जतावतानी।
देशवा बुलावतानी हो ।।
नैन सोहै नाहिं कजरा, नाहिं केशिया में गजरा ।
नजरा लागे नाहिं, तनवाॅ बचावतानी।
देशवा बुलावतानी हो ।।
तीज कजरी सुमार, बाटे बड़का इतवार ।
बुढ़वा मंगर दीप, मेंहदी रचावतानी।
देशवा बुलावतानी हो
*कवि : विनय शर्मा "दीप "
( मुंबई )