कविता : बातें करो ना...

कविता : बातें करो ना...

कविता : बातें करो ना...

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बातें करो ना 
कुछ सच्ची  कुछ अच्छी
कुछ प्यारी कुछ न्यारी 
बातें करो ना ।
बहुत तन्हाई है 
 रात बहुत उदासी लायी है 
कुछ अपनी कहो कुछ मेरी सुनो ना 
बातें करो ना  ।
सदियाँ बीती तुमसे मिले हुए 
हर एक पल में हज़ारों साल मिले हुए 
तुम ख्वाबों में आकर ही मिलो ना 
बातें करो ना ।
आवाज में दरारे हैं
सुनाई कुछ नहीं देता बस इशारे हैं 
कभी  तुम भी मेरे इशारे समझो ना 
बातें करो ना  ।
रूह से निकल कर रूह तक जाती हैं 
इक आस है हवा में बहती है 
ज़ुदा सिर्फ जिस्म है आवाज रूह की सुनो ना 
बातें करो ना ।
तेरी आवाज से रवानी है 
बिन तेरे मेरी हालत दीवानी है 
आगोश में तेरे रहूं हमेशा कैसे समझो ना 
बातें करो ना  ।
दिल की बातें करो ना 
दिल से बातें करो ना 
लफ्जों के आगे भी समझो ना 
बातें करो ना ।

* कवि : राजेश कुमार लंगेह    ( जम्मू )