राष्ट्रीय युवा दिवस पर अमिता 'अशेष' की प्रासंगिक रचना - " विवेक का आनंद हो जब..."
राष्ट्रीय युवा दिवस पर अमिता 'अशेष' की प्रासंगिक रचना -
" विवेक का आनंद हो जब... "
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विवेक का आनंद हो जब,
भावना सुखी संसार हो।
न हो दुःखी संतप्त कोई ,
प्राणियों में प्यार हो ।
धर्म हो बस एक केवल ,
मानवता साकार हो ।
न हो धनी -निर्धन कोई ,
समानता का आधार हो।
नर नारि में न भेद हो ,
सम्मान समान अधिकार हो।
प्राणिमात्र में हो सद्भावना ,
सम्पूर्ण सृष्टि ही परिवार हो।
दीन दुःखी हित सहायता ,
युवा वाहिनी आकार हो ।
सर्वत्र करुणा शुभकामना हो,
घृणा का बन्द व्यापार हो।
प्रेम हो पावन परस्पर ,
मिटे यदि व्याभिचार हो ।
सुरा- सुन्दरी व्यसन शमन,
संस्कारों में सदाचार हो ।
लोभ लिप्सा ग्रस्त सत्ता ,
खण्डित हर दीवार हो ।
है सनानत सबके हित जो,
उपदेश का प्रसार हो।
अधर्म का हो संपूर्णनाश ,
धर्म का प्रचार हो ।
दूर हों सारे अँधेरे मानव -
स्वयं दीप का प्रकार हो।
शुभ्र कर्मो में निहित सार ,
सुफल अमित अपार हो।
नरों में श्रेष्ठ #नरेन्द्र वही ,
परहित परोपकारी उद्गार हो।
भुवनेश्वरी तेरे पुत्र हेतु ,
किस भाँति तेरा आभार हो।
विवेकानन्द आकांक्षा अब,
माँ भारती से दूर सब विकार हों।
* अमिता 'अशेष'
( लखनऊ )