कविता : हर बार रावण जलाना है!
कविता : हर बार रावण जलाना है!
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हर बार रावण जलाना है
हर बार धनुष उठाना है
जो बना के सजाए हैं रावण कई
उनको भी तो मार गिराना है
हर बार रावण जलाना है
हर बार धनुष उठाना है ।
मैल जम जाती बिन सफाई के
भ्रम, फरेब, चोरी बढ़ जाती है बिन सच्चाई के
हर बार शास्त्र शस्त्र का संतुलन बिठाना है
हर बार रावण जलाना है हर बार धनुष उठाना है ।
रावण मरे सदियां बीतीं
फिर भी फैली रही हजारों कुरीति
समाज हो या देह
हर बार बचाना है
हर बार रावण जलाना है हर बार धनुष उठाना है ।
जल जायेगा रावण फिर से
तेरे अंदर का रावण कब मरेगा
जो लांघी है लक्ष्मण रेखा तूने
उसका हिसाब कब करेगा
पापी मन की लंका का दहन करवाना है
हर बार रावण जलाना है
हर बार धनुष उठाना है ।
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह ( बीएसएफ)