कविता : जीवन एक पर्वती धारा

कविता : जीवन एक पर्वती धारा

 कविता : जीवन एक पर्वती धारा ...

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है यह जीवन..एक पर्वती धारा सा 
चल बहता चल..कभी नीचे गिरता..
कभी ऊपर उठता हुआ सा । 
कहीं दाहिने कहीं बायें 
रुख़ करता हुआ..
बाधाओं को पार करता हुआ सा.. 
कभी मद्यम और शांत..
कहीं उफ़नता..गरजता हुआ सा.. 
और याद रख 
जब तक तुझमें है यह रवानगी ज़िंदा.. 
बस तब तक है..तुझमें यह ताजगी ज़िंदा 
और देख 
जहां-जहां तू रुका-रुका सा है ना.. 
बस वहाँ-वहाँ तू बंधा बंधा सा है..
जितना तू उसे पकड़े हुआ सा है ना 
उतना ही तुझे वह..
जकड़ा हुआ सा है.. 
ना घबरा ,
बस एक बार यह पकड़ छोड़ कर तो देख..
तू जाने तो दे..एक बार..ए दोस्त..
फिर देख..कैसे तू पाये वह खोयी सी 
रवानगी तेरी..
वह ताजगी..वह जीवन की आवारगी तेरी..
चल अब उठ…
जा बन जा फिर से एक बार..वह 
उफनती हुई एक 
पर्वती धारा..।

 * रचनाकार  : कर्नल अमित  ( जम्मू )