कविता : पत्थर
कविता : पत्थर
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पत्थर कहां सिर्फ पत्थर है
वक़्त का गवाह,वक़्त की परवाह,
आने वाले कल का मंजर है
पत्थर कहां सिर्फ पत्थर है
राम लिख दो तो रामसेतु है
उड़े अंतरिक्ष में तो धूमकेतु है
लिख दो शिलालेख तो शास्त्र है
फेंक दो दुश्मन पर तो शस्त्र है
पत्थर कहां सिर्फ पत्थर है ...
पत्थर का हो दिल तो
कहां इंसा वहशी से जुदा है
ढूंढो,तो पत्थर में भी खुदा है
हो जुनून तो पत्थर पिघल जाते हैँ
मजबूरी में पत्थर भी निगल लिये जाते है
कहीं ओट कहीं यह बिस्तर है
पत्थर कहां सिर्फ पत्थर है ...
पत्थरों के महल पत्थरों का शहर
पत्थरों की ठोकरे पत्थरों से खैर
पत्थरों की चुभन पत्थरों की जलन
पत्थरों से दिल पत्थरों में मग्न
आंखें,कान,जुबाँ सिर्फ पत्थर है
पत्थर कहां सिर्फ पत्थर है ...
पत्थर फलसफा पत्थर नजरिया है
वक़्त का बेरोक-टोक दरिया है
कल,आज और आने वाले पल सब बहते हैं
इंसानियत को बयान करने का
पत्थर एक जरिया है
बेजुबान पत्थर इंसा सा
बेरहम इंसा पत्थर है
पत्थर कहां सिर्फ पत्थर है ...
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह ( जम्मू )