पितृ दिवस पर विशेष कविता "पिता"
पितृ दिवस पर विशेष कविता "पिता"
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तेरी मुहब्बत, तेरी हस्ती
तेरी बरकत
जिंदगी बस इसमें ही सिमटी है
मेरे ख़ाब, मेरी ख्वाहिश
तेरा पूरा करना मेरी फर्माइश
जिंदगी बस इसकी बदोलत ही है ।
तेरा जुनून , तेरा कानून
मेरे लिया खोया तेरा सुकून
जिंदगी बस इसी से ही सुलझी है ।
वो बोल, तेरा तोल
यकीन कराना मुझे मेरा मोल
जिंदगी बस इसी से ही संवरी है
तेरा वज़ूद, मुझ में मौजूद
तेरा सुरूर,मुझ पर तेरा बेपनाह गुरूर
जिंदगी तेरे दिखाए रास्ते पर ही टिकी है।
तेरी बातें सयानी, तेरी सोच रूहानी
मेरी छोटी सी कहानी
जिंदगी बस इसमें ही बीती है
सिर्फ अक्स ही तो हूँ तेरा
थोड़ा तेरा नक्श थोड़े मेरे ज़ज्बात
जिंदगी गीली मिट्टी सी, सजी तेरे ही तो हाथ
जिंदगी तेरे हाथों ही तो सजी है ।
बरगद सा चुपचाप रहा
कहां मैं कभी तुम्हें समझ पाया
पिता बना तो एहसास आया
औलाद ही है सबसे बड़ा सरमाया
पिता होना भी इक तप है
पिता होना इक कठिन पथ है
जिंदगी कुछ नहीं बस तेरा ही सब है
तू ही रहनुमा तू ही रब है ।
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह ( जम्मू )