कविता : विरही पत्नी की पाती

कविता : विरही पत्नी की पाती

   कविता : विरही पत्नी की पाती

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लाई-गट्टा,पितिउरा,

ढूंढ़ी बा तैयार

के गट्टा पकड़इ मोरा,

ढूंढ़ी पालनहार ।

ढूंढ़ी पालनहार,

ननद जी जीभर रोइहैं

खिचरी ना जाए तउ,

हमका ही गरियइहैं ।

कह 'सुरेश' हमरा के

आवत अहइ रोवाई

तोहरा बिन खाई कइसे

गुड़,चिउरा,लाई ।

 * कवि : सुरेश मिश्र ( मुम्बई )