सुरेश मिश्र की कलम से एक खास रचना "आम "
सुरेश मिश्र की कलम से एक खास रचना "आम "
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मैं आम हूं,
लोग चूसते हैं मुझे,
नेता हो या आदमी।
एक मौसम होता है गांव का,
एक मौसम होता है चुनाव का।
'आम' फलों का राजा कहलाता है,
चुनाव में आम राजा बन जाता है।
आम मीठा,खट्टा,रसेदार होता है,
'आम' भी ऐसे ही मजेदार होता है।
'आम' सहते हैं पत्थर और डंडे,
'आम' खाते हैं पत्थर और डंडे।
एक का सीज़न आता है पांच साल पर,
एक का सीज़न आता है एक साल पर।
'आम' चटनी बनाने के काम आता है,
यहां 'आम' खुद चटनी बन जाता है।
आम कई प्रकार के होते हैं,
कभी हंसते हैं तो कभी रोते हैं।
हापुस,लंगड़ा,दसहरी, देसी,तोतापायरी,
जिन पर कवियों ने लिखी कविता-शायरी।
गरीब-अमीर, असहाय भूखा,
कहीं पर बाढ़ तो कहीं पर सूखा।
आम मूसने के काम आता है,
आम चूसने के काम आता है।
तीन महीने हंसता है,नौ महीने सोता है,
आम दो माह हंसता है,पांच साल रोता है।
वैसे आम के लिए कोहराम होते हैं,
क्योंकि -
आम के आम गुठलियों के भी दाम होते हैं।
* रचनाकार : सुरेश मिश्र
( हास्य-व्यंग्य कवि, मुम्बई )