गज़ल : क्या बताएँ ....

गज़ल : क्या बताएँ ....

     गज़ल : क्या बताएँ ....

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क्या बताएं खुद से क्यों हम, दुश्मनी करते रहे,
महफिलों में बात क्यों हम ,  अनमनी करते रहे।

वक्त जैसा भी हो हमने , हारना सीखा ना था,
इस लिए किरदार हर जी, सनसनी करते रहे।

मखौल कुछ को ये लगा और कुछ को कुछ दीवानगी,
कयास सारे कुछ न कुछ वो, कतरनी करते रहे।

दिल को रख फौलाद मैंनें,  गम को दवा बना लिया,
फिर खुरच के चोट अपनी, खुद हरी करते रहे।

फर्क 'रजनी' को पड़ा न, अपने इस अंदाज से,
दिल ने उसके जो कहा वो, मसखरी करते रहे।

* रजनी श्री बेदी ( जयपुर - राजस्थान )