कविता : चलो चलो महाकुंभ चलो

कविता : चलो चलो महाकुंभ चलो

कविता : चलो चलो महाकुंभ चलो

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भक्ति का संगम है, शक्ति का संगम है,
पावन माटी पर विरक्ति का संगम है,
गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम है,

तज करके दुनिया के दंभ चलो,
चलो चलो महाकुंभ चलो 
आओ चलो महाकुंभ चलो।

धूनी रमाए हैं भोले जहां,
श्रीधर स्वयं आके डोलें जहां,
पंचतत्व मुक्ति द्वार खोले जहां 
मइया बुलावें, अविलंब चलो 
चलो चलो महाकुंभ चलो 
तज करके दुनिया के दंभ चलो 
चलो चलो -------1

 सुर नर  करें कल्पवास जहां 
आराधना की है प्यास जहां 
 मोक्ष का हो एहसास जहां 
इन सबका करने परिरंभ चलो
चलो चलो महाकुंभ चलो 
तज करके दुनिया का दंभ चलो।
चलो चलो ----------2

अमृत कलश का यहां अंश है 
सत्य सनातन का अनुवंश है 
पापों का होता जहां ध्वंस है 
मन के मिटाने हर निशुंभ चलो
चलो चलो महाकुंभ चलो 
तज करके दुनिया का दंभ चलो 
चलो चलो ----------3

 बारह वर्षों बाद आएगा फिर 
जब पुण्य मानव कमाएगा फिर 
संगम हमें कब बुलाएगा फिर 
भरने पावनता का कुंभ चलो 
चलो चलो महाकुंभ चलो 
तज करके दुनिया के दंभ चलो।
चलो चलो ----------4

योगी जी बोले भक्तों संगम नहाने चलो 
भोले भी बोले भक्तों संगम नहाने चलो 

चालिस करोड़ आए, तुम भी नहाने चलो 
माया सब छोड़ आए तुम भी नहाने चलो 

मां का बुलावा आया,संगम नहाने चलो 
मन में उत्साह छाया तुम भी नहाने चलो

मोक्ष दिलाने आया,संगम नहाने चलो 
मौसम फिर से मुसकाया,संगम नहाने चलो।

* रचनाकार : सुरेश मिश्र 

(हास्य कवि ) मुंबई