राजेश कुमार लंगेह की रचना - छोटा सा घरौंदा...
राजेश कुमार लंगेह की रचना -
छोटा सा घरौंदा...
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छोटा सा घरौंदा है,
तूफानों ने रौंदा है
परवाज कहाँ रुकेगी मेरी
बेपरवाह परिंदा है
छोटा सा घरौंदा है ।
भरोसा है पंखों को
थाम लिया है तमन्नाओं को
देख लूँ आज अपनी जिद को भी
छेड़ दिया है मैंने तरंगो को
छोटा सा घरौंदा है
तूफ़ानों ने रौंदा है।
लकीर से हटकर लड़ाई है
बेइंतहा हिम्मत जुटाई है
आज आज़माना है जुनूँ को
अभी तो पहली ईंट हिलायी है
छोटा सा घरौंदा है
तूफ़ानों ने रौंदा है।
खुद में बदलाव लाया है
तराश कर खुद को
खुद को पाया है
बहुत सस्ते में खरीद लिया था दुनिया ने
अब जाकर अपनी कीमत का एहसास आया है
छोटा सा घरौंदा है
तूफ़ानों ने रौंदा है ।
अपनों ने आकर संभाला है
फिर गलतियों पर पर्दा डाला है
भूल कर अपना गम
हंस कर सब टाला है
छोटा सा घरौंदा है
तूफ़ानों ने रौंदा है ।
* कवि : राजेश कुमार लंगेह
( जम्मू )