अनंत चतुर्दशी पर विशेष कविता : जाइ रहे हो फिर से आना
अनंत चतुर्दशी पर विशेष कविता : जाइ रहे हो फिर से आना
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भारत माता के कण-कण को,
विघ्न विनाशक पुनः सजाना।
हे गणनायक, भाग्यविधायक,
जाइ रहे हो फिर से आना।
सावन बरस-बरस थक जाए,
झूम-झूम भादों हर्षाए,
धानी धरती जब इठलाए,
मस्त मगन मछुआरा गाए।
फिर भक्ती की ज्योति जलाना।
जाइ रहे हो फिर से आना।
आस और विश्वास तुम्हीं हो,
सब देवों में खास तुम्हीं हो,
जग उमंग-उल्लास तुम्हीं हो,
जीवन के मधुमास तुम्हीं हो,
प्रभु,भक्तों को भूल न जाना,
जाइ रहे हो फिर से आना।
राग,द्वेष,छल पांव पसारें,
दंभ-करप्शन भी हुंकारें ,
घृणा-ईर्ष्या,कपट सुखारे,
भाईचारा है सहमा रे,
अधिक न इंतजार करवाना,
जाइ रहे हो फिर से आना।
भक्तों से भगवान हारते,
असुरों को भी आप तारते,
जब-जब होइ धरम की हानी,
भांति-भांति अवतार धारते ,
प्रभु जी अपनी रीति निभाना,
जाइ रहे हो फिर से आना।
भारत माता के कण-कण को,
विघ्न विनाशक पुनः सजाना।
हे गणनायक, भाग्यविधायक,
जाइ रहे हो फिर से आना।
* सुरेश मिश्र
_ ( हास्य व्यंग्य कवि एवम् प्रसिद्ध मंच संचालक ) मुंबई ....