कविता :  तेरे जिक्र में भी तेरी फ़िक्र में भी मैं

कविता :  तेरे जिक्र में भी तेरी फ़िक्र में भी मैं

कविता : 
       तेरे जिक्र में भी तेरी फ़िक्र में भी मैं
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तेरे जिक्र में भी तेरी फ़िक्र में भी मैं 
कारवाँ में शामिल तेरा हमसफर भी मैं 
 तेरे हर अक्स, हर तस्वीर में शामिल मैं 
हर अनजाने ख्वाब की तामील भी मैं
तेरा दुःख तेरा सुख 
तेरी हंसी , आँखों की नमी 
वो इन्तज़ार में रास्ते पर टिकीं नजरें
वो बचपना वो सपना 
तेरे हर किस्से कसीदे में भी मैं 
तेरे जिक्र में भी तेरी फ़िक्र में भी मैं ।

कारवाँ में शामिल तेरा हमसफर भी मैं 
 बेवजह डरना, ना चाहते हुए भी हँसना 
पुरानी बातों पर बिलख बिलख कर रोना 
वही सवाल वही जवाब फिर भी तफ्तीश करना 
हर हक हर शक हर सबब में मैं 
तेरे जिक्र में भी तेरी फ़िक्र में भी मैं ।

कारवाँ में शामिल तेरा हमसफर भी मैं 
एक पल में हजारों ख़यालात 
एक ही घड़ी में लाखों हालात 
बुलबुलों सी हँसी कभी 
कभी शबनमी तालुकात
फुहार सी छुअन कभी 
कभी बेरुखी से मुलाकात 
कल में भी था तेरे, रहूँगा 
आज और  आने वाले कल में भी मैं 
तेरे जिक्र में भी तेरी फ़िक्र में भी मैं ।

कारवाँ में शामिल तेरा हमसफर भी मैं
शामिल हो तुम मेरी नसों में 
बहती हो जैसे खून बनकर 
हर साँस में मौजूद है खुशबु तेरी 
ग़म हो तुम्हें तो आंखे मेरी भी छलकें
मुझमें तुम , तुम में भी मैं 
तेरे जिक्र में भी तेरी फ़िक्र में भी मैं ।

कारवाँ में शामिल तेरा हमसफर भी मैं 
 तेरे हर अक्स हर तस्वीर में शामिल मैं 
हर अनजाने ख़ाब की तामील भी मैं 
तेरे जिक्र में भी तेरी फ़िक्र में भी मैं ।

* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह
                                ( जम्मू )