कविता : ये होती है फौज ...
कविता : ये होती है फौज ...
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लहजे में भड़क है
आवाज भी कड़क है
चेहरे पर तेरे कैसे है इतना रौब ?
बता क्या देती है फौज?
रूखा सूखा खाते हो
क्या गर्मी क्या सर्दी सब
झेल जाते हो
कैसे तंदुरुस्त रहते हो रोज ?
चेहरे पर तेरे कैसे है इतना रौब
बता क्या देती है फौज ?
घर से दूर हो
मिलने से मजबूर हो
बर्फ पहाड़ जंगल समुद्र
आबादी से भी कोसों दूर हो
दूर दराज हो के भी है तुम्हारी मौज
बता क्या देती है फौज?
मौसम की मार है
दुश्मन से तकरार है
चंद पैसों के लिए
क्या सर पर भूत सवार है?
क्यूँ भटकते हो कौन सी है खोज ?
बता क्या देती है फौज?
मेरा मजहब मेरा ईमान
मेरी शान मेरी जान है फौज
नाम नमक निशान है फौज
हर बाशिंदे का विश्वास है फौज
देश पर कुर्बान होने का नाम है फौज
बेखौफ माहौल गहरी चैन की नींद
की वज़ह है फौज
फौज है तो मौज है
खिलखिलाहट हर रोज है
शहनाई नगाड़े ढोल ताशे
सिपाही चौबीसों घंटे जागे
होली दिवाली वैशाखी के मेले
फौज अपनी जान पर खेले
तरक्की मुल्क की सब जग बोले
फौज नहीं तो क्या कुछ हो ले ?
सिपाही हूं सीमा पर खड़ा देश हूं
मैं कुछ नहीं जो हूं सब फौज हूं....
* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह ( जम्मू )