कविता : जीवन सत्य ( कवि : वैभव )
कविता : जीवन सत्य
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* कवि : वैभव
जिंदगी इक बार है,
बार-बार नहीं मिलती
हर पल का हिसाब लेती,
उधार नहीं मिलती।
ये नजराने करम है
ऊपर वाले का
किसी को कम किसी को ज्यादा
बेशुमार नहीं मिलती
बस गलती हुई उससे
सलीका नहीं सिखाया
ये जो खेल है जिंदगी का
तरीका नहीं सिखाया
समय के पहिए को ये
खुद ही ठेल लेंगे
बुद्धिजीवी प्राणी हैं
जैसे भी खेल लेंगे
खुद में यू सिमटकर रह जाएगी कहानी
ना सोचा था ये उसने
यह न समझेंगे रवानी
समय की नाव मैं
बैठे हैं ये बेसहारा
बहते ही रहेंगे
ना ढूंढ पाएंगे किनारा
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