गज़ल : न आसान होगा ...
गज़ल : न आसान होगा ...
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हक़ीक़त छुपाना न आसान होगा।
लिखे को मिटाना न आसान होगा।।
कदम जब बढे़ बेड़ियाँ लग गईं थीं,
इन्हें फिर बढ़ाना न आसान होगा।
जिसे भूलने में ज़माना लगा है,
उसे फिर सुनाना न आसान होगा।
गिरे जो हमारी नज़र में उन्हीं से,
ख़लोशी दिखाना न आसान होगा।
रखो मत भरम तुम किसी बात का अब,
तुम्हें घर बुलाना न आसान होगा।
न दीपक बुझाओ मेरी आरती का,
इसे फिर जलाना न आसान होगा।
नहीं 'भावना' की कदर अब किसी को
ग़ज़ल गुनगुनाना न आसान होगा।
* कवयित्री : भावना मेहरा ( आगरा )