कविता-आस

कविता-आस

   कविता : आस

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तेरे दिल के करीब आऊँ मैं,
लौट के फिर कभी न जाऊँ मैं।

लिखे जो तेरे प्यार में नगमें,
बैठ सँग तेरे गुनगुनाऊँ मैं।

बनूं मैं दिल और बने तू धड़कन,
ख़ैर ऐसी कहाँ से पाऊँ मैं।

तेरे दीदार को न तरसे कभी,
ऐसी नज़रें कहाँ से लाऊं मैं।

रूह से रूह का मिलन करा दे जो,
कौन सी नज़्म ऐसी गाऊँ मैं।

इश्क में भीग जाएं हम दोनों,
बदली बन के बरस ही जाऊँ मैं।

*कवयित्री : रजनी श्री बेदी
      ( जयपुर-राजस्थान)