कविता : हम बोलें तो खलता है
कविता : हम बोलें तो खलता है
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हम बोलें तो खलता है
वह बोलें तो चलता है।
प्यार-मुहब्बत कभी न करना,
जो करता है जलता है।
झूठ,पाप,अन्याय आजकल
'इन' लोगों को फलता है।
घोषित हुआ इलेक्शन जबसे,
मौसम रोज बदलता है।
आबादी का देख संतुलन,
बबुआ जहर उगलता है।
शेर दबाए दुम बैठा है,
'पड़वा' खूब उछलता है।
गांवों में भी शहर घुस गया
रह-रह रोज मचलता है।
मां की दुआ साथ में रखिए,
इससे हर गम टलता है।
आगे केवल वह जाता है
जो सांचे में ढलता है।
* रचनाकार : सुरेश मिश्र ( हास्य-व्यंग्य कवि ) मुम्बई