कविता : कामना

कविता : कामना

           कविता : कामना

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नववर्ष की यही कामना..
हटे दिल से हर दुर्भावना,
न काम ऐसा कोई करे..
आहत हो जिसमें भावना।

मेहनत करें मन्ज़िल मिले..
हो दूर सब शिकवे गिले,
मिले हौंसला सब काम हो..
प्रभु हाथ सबके थामना।

फैली हुई अज्ञानता की..
कालिमा  चहुँ ओर है,
मुझे ज्ञान दो मुझे ध्यान दो..
मिली अब तलक कोई छाँव न।

मेरी लेखनी में भरो शफा..
हर लफ्ज़ इसका स्वर्ण हो,
लिखूँ जो भी मैं उतरे हृदय..
करो पूरी मेरी कल्पना।

 * कवयित्री : रजनी  श्री बेदी
         ( जयपुर, राजस्थान )