कविता : कैसे हो तुम ? 

कविता : कैसे हो तुम ? 

   कविता : कैसे हो तुम ? 
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पहली बार खुद से आज पूछ ही लिया
कैसे हो तुम ?
दुनिया के शोर-शराबे में कहां हो तुम?
बताओ कैसे हो तुम ?
बात करते-करते रुक जाते हो 
ख़ुद में खुद ही खो जाते हो 
ना एहसास तेरा ना ज़ज्बात तेरा 
रूह तक तेरे आवाज पहुंचे 
ऐसी भी कभी राह चुन 
बोल भी दो कैसे हो तुम? 
जवाबों से भरा हूँ पर जबाब नहीं 
खुद पर खुद सवार हूं पर हाथ लगाम पैरों में रकाब नहीं 
कैसा हूँ मैं?
पर इसका जवाब नहीं 
ख़ुद को कभी देखा नहीं 
ख़ुद में कभी झांका नहीं 
दुनिया की फ़िक्र बहुत की 
पर ख़ुद से कभी पूछा नहीं 
 कि कैसे हो तुम?
आज पूछा तो एहसास हुआ 
मेरा मुझसे कोई रिश्ता था ही नहीं 
खुश करने लगा था दुनिया को 
उस खुशी में मेरा पर कोई हिस्सा था ही नहीं 
खुद से मैं बड़ा अनजान शर्मसार सा हूं 
खुद में खुद कब से बेजान,बेकार सा हूं 
ना जबाब ना हिसाब ना ही कोई धुन 
कैसे खुद को पूछूं की कैसे हो तुम?
अब से खुद का ख्याल रखूँगा 
खुद से खुद का मलाल रखूँगा 
फ़िक्र भी जिक्र भी मौज भी होगी 
अपनी कायनात में खुद का जमाल रखूँगा 
आज तो जवाब नहीं पास मेरे 
पर आगे से किताब रखूँगा 
हर खुशी ग़म का खाना होगा 
खुद को हर बार बताना होगा 
कब से हो गुम?
कहां हो तुम?
क्यूँ हो तुम?
कैसे हो तुम?
हाँ , कैसे हो तुम?

रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह
      (बीएसएफ - छत्तीसगढ़)