कवि एवम् मंच संचालक सुरेश मिश्र की कलम से विशेष कविता - ये जग केवल 'पाही' है
कवि एवम् मंच संचालक सुरेश मिश्र की कलम से विशेष कविता
ये जग केवल 'पाही' है ....
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ऊपर वाला पासा फेंके,
हम सब सिर्फ सिपाही हैं।
दुनिया एक मुसाफिर खाना,
हम तो केवल राही हैं।
धर्म-कर्म-सत्कर्म न होवे
तब तक आवा-जाही है ।
असली घर तो उसके दर है,
ये जग केवल 'पाही' है।
कोई भी आए इस जग में,
उसे छोड़कर जाना है।
राम-कृष्ण या बुद्ध सभी को,
बस कर्तव्य निभाना है।
ऊपर के रिमोट से चलता,
सारा ही अफसाना है।
अलग-अलग रस से व्यापित,
समझो जग भी मयखाना है।
रावण हो या राम सभी से,
हमने कुछ-कुछ सीखे हैं।
मीठी लगती झूठ मगर,
हर सत्य बहुत ही तीखे हैं।
ये दुनिया शतरंज सरीखी,
प्यादे सब प्रभु ही के हैं।
तुलसी -सूर-कबीर कर्म से,
अब भी जग में दीखे हैं।
* सुरेश मिश्र
( वरिष्ठ कवि एवम् मंच संचालक )