कविता : तूने खून पसीने से सींचा है !

कविता : तूने खून पसीने से सींचा है !

कविता : तूने खून पसीने से सींचा है !
***************************

तेरा आधार ऊँचा है 
तूने खून पसीने से सींचा है 
क्या मजाल कोई तुमसे टकराये?
उलझे तो मिट्टी ना हो जाये ?
किस्मत की लकीरों को 
तूने मेहनत से खिंचा हैं 
तेरा आधार ऊँचा है 
तूने खून पसीने से सींचा है।

तू लम्हों में जिंदा नहीं 
तुमसे लम्हे जिंदा हैं 
तू चू-चू करती चिड़िया नहीं 
तू बाज परिंदा है 
सरफिरे प्रेमी हो तुम 
तुम ने स्नेह सींचा है 
तेरा सम्मान ऊंचा है 
तूने मेहनत से सींचा है ।

तू उड़ता है तो बादल 
फट जाते हैं 
तेरी हुंकार से मुर्दे भी डंट जाते हैं 
तूने समुद्र को बाहों में भींचा है 
तेरा धैर्य ऊँचा है 
तूने खून पसीने से सींचा है।

तेरे एहसास से रोशन हैं क़ायनाते 
तूने भर-भर के बांटी है सौगातें 
क्या छीने कोई तुमसे ?
ईमान की खातिर 
ठुकराई है तुमने जायदादें 
तेरा फर्ज मजहब से ऊँचा है 
तेरा व्यावहार ऊंचा है 
तूने खून पसीने से सींचा है।

* रचनाकार : राजेश कुमार लंगेह
                             ( जम्मू )