कहानी : समझ ! : लेखिका - कविता सिंह
कहानी : समझ !
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किसी शहर में एक युगल रहता था। शादी के कई साल बाद तक उनकी कोई संतान नहीं हुई थी। काफी मन्नतों के बाद 18 साल उपरान्त उनके घर में खुशियां आईं और एक प्यारी सी बच्ची का जन्म हुआ। जिसका नाम राधिका रखा गया। विवाह के काफी साल बाद बच्चे के जन्म से सभी खुश थे। सभी राधिका से बहुत प्यार करते थे, उसकी हर अरमान पूरे करते थे।
राधिका के पापा की कमाई ज्यादा नहीं थी फिर भी अपनी बच्ची के लिए कभी कोई कमी नहीं रखते थे। वह जो भी मांगती थी उसकी मांग अवश्य पूरी होती थी।
समय गुजरता गया। राधिका धीरे -धीरे बड़ी होने लगी । वह पढ़ाई में भी काफी होशियार थी ।
एक दिन उसने अपनी मम्मी को पापा से बोलते हुए कुछ सुना । उसकी मम्मी कह रहीं थीं " मेरे पैर की जूतियां खराब हो गई हैं। ठंड का मौसम है, मेरे पैरों में बहुत ठंड लगती है। आप मुझे नई जूतियां लाकर दीजिए।"
इस पर उसका पति बोला " इस महीने कैसे भी करके काम चला लो, अगले महीने जरूर लाकर दूंगा ।"
यह सुनकर मम्मी बेचारी खामोश हो गई ,पर दूर खड़ी राधिका यानि उनकी प्यारी सी बेटी उन दोनों की सारी बातें ध्यान से सुन रही थी।
अगली सुबह वो अपने पापा से जिद्द करने लगी की मुझे नई जूतियां लाकर दो वो पुरानी वाली नहीं पहनूंगी मैं।
उसके पापा उसी समय बाजार जाकर उसके लिए जूतियां लेकर आए ।राधिका बहुत खुश हुई और दो दिन तक पूरे दिन उसे पैर में पहन कर घूमने चली जाती थी, अपनी सहेलियों के साथ ।
दो दिन बाद वह अपनी मम्मी से बोली " मम्मी मुझे नही पहनना मेरा मन भर गया इसे पहन कर"
" अरे बेटा पर आपने इतना जिद्द करके पापा से मंगवाया है, पहनो इसे ...." उसकी मां समझाने लगी।
तब उस नन्हीं सी जान राधिका अपने पापा से बोली "पापा मम्मी आपसे जूतियां लाने के लिए बोल रही थी पर आपने मना कर दिया,
मुझे तो आप किसी बात के लिए मना नहीं करते हैं ना इसलिए मैं बहाना करके जूतियां मंगवाया। मुझे तो अपनी वो पुरानी वाली जूती ही पसंद है ।" ये सुन कर उसके मम्मी पापा के आंखो में खुशी के आंसू आ गए बेटी की बात सुन कर... उनकी नन्हीं सी बेटी सचमुच कितनी बड़ी हो गई थी।
लेखिका : कविता सिंह
( गौतम बुद्ध नगर - नोएडा )