वरिष्ठ कवयित्री रजनी श्री बेदी की कलम से एक विशेष रचना ... "बेबसी"
वरिष्ठ कवयित्री रजनी श्री बेदी की कलम से एक विशेष रचना .... "बेबसी" **************************
सिमटना चाहा था मैंने जितना. उतनी ही मैं बिखर रही हूं।
मै कैसे आऊं श्रृंगार करके..
नजर तेरी को अखर रही हूं..।।
है शून्य आँखें और देह मिट्टी ..वजूद भी अब बचा नहीं है,
बढ़ा के तेरी मैं कितनी कीमत.. स्वयं हमेशा सिफर रही हूं।
बचा के रखी थी चांदनी जो... तेरी अमावस के डर से मैंने ,
लगा लो अब कितने दाग रूह पर..उससे ही मैं निखर रही हूं।
मै खाऊं दर-दर की ठोकरें और दिल को तेरे बड़ा सुकून हो,
न होंगी ये साजिशें मुकम्मल..देखो कितना संवर रही हूं।
जब होश आया तो खुद को ढूंढा.. पर नब्ज मेरी डूब रही थी,
निकाल के तुझको दिल से बाहर, देखो फिर से उभर रही हूं।।
* कवयित्री : रजनी श्री बेदी
जयपुर ( राजस्थान )