कविता : मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया
कविता : मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया
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मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया
झूठ था फरेब था
नशे का हुजूम था
गिन-गिन के सबका हिसाब किया
मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया ।
खुद में मद था
गुरूर बेहद था
सब वहम को चूर-चूर किया
मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया ।
लोभ तृष्णा, काम वासना का शिकार था
मुझसे ही सब चलता है
इस सोच से बिमार था
हर बुरी शह को मिटा दिया
मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया ।
बहुत बोझ लेकर चल रहा था
हर अपने को छल रहा था
छल कपट से खुद को आज़ाद किया
मैंने अपने अंदर का रावण मार दिया ।
* कवि : राजेश कुमार लंगेह
( बीएसएफ)