कविता : क्योंकि तू मेरे पास नहीं है
कविता : क्योंकि तू मेरे पास नहीं है
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न कोई रोकता है,
न कोई टोकता है,
मगर एक प्रश्न है-
जो दिल को कचोटता है।
मौन साधे रहता हूं,
भावों में बहता हूं,
चुभती-सी टीस है -
जिसे पल-पल सहता हूं।
सब अपने हैं,मगर कोई खास नहीं है,
क्योंकि तू मेरे पास नहीं है।
कभी रूठना तो कभी हंसना,
अपनी ही बातों में खुद फंसना,
सुबह रार,दोपहर को तकरार,
शाम को प्यार के गहने में जंचना,
करती वही, जो ठानती थी,
अपनी ही बात को मानती थी,
पर,मेरी नाराज़गी दूर करने का
हर इलाज़ भी जानती थी।
फागुन है,उसके संग मधुमास नहीं है,
क्योंकि तू मेरे पास नहीं है।
क्या गलत है, क्या सच्चा है,
कौन बुरा है, क्या अच्छा है,
अब महसूस होता ही नहीं,
'मेरा भी दिल इक बच्चा है'।
न कोई इसरो,न कोई नासा है,
अब लागे मिट्टी को,तुमने तराशा है,
चाह है,परवाह नहीं,सड़कें हैं राह नहीं,
कांटो-सी चुभन है,पर उर में आह नहीं,
अपनी ओर खींचे जो, आवास नहीं है,
क्योंकि तू मेरे पास नहीं है।
तू है तो जिंदगी है,
तू है तो बंदगी है,
जब से तुम गई हो न-
ये जिंदगी केवल टॅंगी है।
स्मृतियों के झरोखे हैं,
बाकी सब कुछ धोखे हैं,
चाहे जितनी बात करूं,
आज कौन रोके है?
सांस तो है,लेकिन उल्लास नहीं है,
क्योंकि तू मेरे पास नहीं है।
* कवि : सुरेश मिश्र ( मंच संचालक - मुम्बई )