डमरू छंद ...

डमरू छंद ...

       डमरू छंद ...
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( एक दिन आधी रात में मुरलीधर ने उस समय वन में बंशी बजाना शुरू कर दिया ,जब घनघोर बारिश हो रही थी। अंधेरी रात, मगर गोपियां अपने-अपने घर से वन की ओर दौड़ पड़ीं जहां से बंशी की धुन आ रही थी-----)

घनन-घनन बरसत घन थल पर,
सनन-सननकर पवन चलत शर।

लरजत,बरजत,गरजत नभ पर,
सरपट चलत लखत वन तज घर।

सरर-सरर तम करत डरत मन,
मगर कदम डग भरत डगर पर।

जब मन बसत मदन लय हर पल,
हरत सकल भय जल-थल-नभचर।

* कवि : सुरेश मिश्र

     ( मुंबई )